अमरकंटक / श्रवण उपाध्याय
मां नर्मदा जी की उद्गम स्थली / पवित्र नगरी अमरकंटक क्षेत्र के अलावा देश प्रदेश की महिलाओं और कुंआरी कन्याओं ने हरितालीका तीज व्रत रख पूजा अर्चन बाद सुहागिन महिलाओं ने अपने पति की लम्बी आयु और उनके कुशलक्षेम हेतु आशीर्वाद मांगा तथा कुंआरी कन्याओं ने अपने अच्छे वर पाने हेतु व्रत रख कामना की ।
यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की तृतीया को देश के लगभग प्रांतों में हरतलिका व्रत महिलाओ द्वारा किया जाता है । इस व्रत को निर्जला लगभग 30 घंटे रह कर किया जाता है । भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन का प्रतीक है ।
इस व्रत के पूजन ने खास ताजी मिट्टी से निर्मित शिव – पार्वती या और नंदी , गणेश , कार्तिकेय आदि बनाकर फुलेहरा के नीचे रख पूजन किया जाता है । पूजन में कलश , बेलपत्र , शमी पत्र , केले का पत्ता , मौसमी फल और फूल , तुलसी , जनेऊ , मंजरी , नारियल , अवीर, चंदन , घी , कपूर , कुमकुम , दीपक , दही , चीनी , दूध , शहद आदि रखते है । तृतीया को पूरे दिन व्रत करने के बाद चतुर्थी तिथि को सूर्योदय बाद पारण किया जाता है । ऐसा कहा जाता है की तृतीया को फूलेहरा के नीचे पूजा अर्चन बाद पूरी रात्रि भजन कीर्तन किया जाना चाहिए , निंद्रा नही करनी चाहिए अन्यथा इसका बड़ा दोष लगता है । पंडित बिहारी महाराज ने वर्णन करते हुए बताया की व्रती महिलाएं रात्रि विश्राम (निद्रा) कदापि नहीं करनी चाहिए तभी सही फल की प्राप्ति है । अन्यथा दोष लगता है ।