बड़े धूमधाम से कल्याण सेवा आश्रम में किया अभिषेक व महाआरती
अमरकंटक:: श्रवण उपाध्याय (पत्रकार)
आज भाद्रपद शुक्ल नवमी को गुरुनानक देव जी के द्वितीय पुत्र आचार्य जगतगुरु श्री श्रीचंद देव् जी के प्रागट्य दिवस के रूप में समस्त उदासीन समाज उनका पूजन करते हुए उनके आध्यात्मिक , धार्मिक , सामाजिक , सांस्कृतिक राष्ट्रीय योगदानों को विशेषतः स्मरण करता है ।
वर्तमान पाकिस्तान के लाहौर में रहने वाली अतिशय श्रद्धालु दम्पति श्री गुरुनानक देव एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमति सुलक्षणा देवी आशुतोष भगवान शिव की आराधना में अहर्निश तत्पर थी । भगवान आशुतोष ने अपनी परम भक्ता सुलक्षणा देवी की करुणा पुकार पर द्रवित होकर उस विषम परिस्थिति में जगतगुरु श्रीचंद देव् जी के रूप में स्वयं को प्रादुर्भूत किया । उनका प्रादुर्भाव भाद्रप्रद शुक्ल नवमी विक्रमसंबत 1551 को लाहौर की खड़गपुर तहसील के तलवंडी नामक स्थान में श्री गुरुनानक देव जी की धर्मपत्नी सुलक्षणा देवी के घर हुआ था ।
अवधूत बाबा श्रीचंद्रदेव जी निवृत्ति प्रधान सनातन धर्म के पुनरुद्धार के लिए अवतीर्ण हुए थे । जन्म से ही उनके सिर पर जटाएं , शरीर पर भस्म , तथा दाहिने कान में कुण्डल शोभित थे ।
आचार्य श्रीचंद्र देव् जी बचपन से ही वैराग्य वृत्तियों से युक्त थे । उनका ग्यारहवें वर्ष में पंडित हृदयलाल शर्मा जी के द्वारा यग्योपवित संस्कार सम्पन्न कराया गया।
उन्होंने परम ज्ञानी वेदवेत्ता विद्वान , कुलभूषण , कश्मीरविद्वानमुकुटमणि पंडित पुरुषोत्तम कौल जी से वेद-वेदाङ्ग और शास्त्रों का गंभीर अध्यन किया
अद्वितीय प्रतिभा से संम्पन होने के कारण आचार्य श्री ने बहुत ही कम समय मे ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अथर्ववेद , समस्त उपवेद सारी विद्याएं हस्तामलक कर ली ।
आचार्य श्रीचंद्र देव जी वैदिक कर्मकांड के पूर्ण समर्थक थे । अंततः आचार्य देव् जी ने अपने प्रमुख चार शिष्यों श्री अलिमस्त साहेब जी , श्री बालूहसना साहेब जी , श्री गोविंददेव साहेब जी , एवं श्री फुलसाहेब जी को चारो दिशाओं में उत्तर , पूरब , दक्षिण एवं पश्चिम पद्धति के प्रतीक चार धुना से सुशोभित किया । जिनकी परम्परास्वरूप आज भी चार मुख्य महंत होते है । धूणे के रूप में वैदिक यज्ञोंपासना को नूतन रूप दिया तथा निर्माण साधुओं के रहने का आदर्श प्रतिपादित कर निवृत्ति प्रधान धर्म की प्रतिष्ठा की । उनका उदघोष था –
चेतहु नगरी , तारहू गावँ ।
अलख पुरुष का सिमरहु नावँ ।।
आश्रम में निवासरत संतों से चर्चा के दौरान श्री चंद्रदेव जी की जीवनी पर प्रकाश डाला गया । उन्होंने 150 वर्ष तक धराधाम पर रहकर अंतिम क्षणों में ब्रम्हकेतु जी को उपदेश दिया और रावी में शिला पर बैठकर पार गए तथा चंबा नामक जंगल मे “विक्रम संवत 1700 पौष कृष्ण पंचमी को अन्तर्धान हो गए । वह अजर-अमर शिव रूप होकर आज भी भक्तों और श्रद्धालु आस्तिकों की मनोकामनाओं को पूर्ण करते है ।
कल्याण सेवा आश्रम में विराजमान भगवान श्रीचंद्रदेव जी का प्रातः4 बजे स्नानादि पूजन पश्चात आरती हुई तथा मंदिर में विराजमान सभी देवी देवताओं की इसी तरह रोजाना पूजन आरती किया जाता है । आज विशेष पूजन श्रीचंद्रदेव् भगवान जी का सुबह से मंदिर सजावट , अधिषेक , पूजन व महाआरती कर संतो व भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया । इस पूजन
में आश्रम के प्रमुख संत स्वामी हिमान्द्री मुनि जी , मंदिर पुजारी नर्मदानंद जी , स्वामी धर्मानन्द जी , स्वामी हरस्वरूप जी , कोठारी संत राम प्रसाद जी , स्वामी शांतानंद जी व अन्य संत , भक्त विशेष पूजन में उपस्थित रहे ।